Wednesday, January 20, 2016

यहीं कहीं ज़िंदा हूँ अभी

यहीं कहीं ज़िंदा हूँ अभी 

तुझे देखे की ख़ातिर शायद

दिल की धड़कने टूटी नहीं 

आँखों की आस भी बाक़ी है 

शायद एक दिन तू मिल भी जाए

साँस का रुकना बाक़ी है अभी

सुबह को तेरी याद, रात को तेरी फ़रियाद

हाथ बढ़ाऊँ और छू लूँ तुझे 

यह ख़्वाब भी बाक़ी है अभी 

सीने में समा पायें

सब अरमान बाक़ी हैं अभी 


यहीं कहीं ज़िंदा हूँ अभी 

तेरे मिलने की उम्मीद मैं शायद 


1 comment:

Natasha Rostov said...

Man! God knows what you are waiting for..but you do have some patience.. I think I am done for this lifetime :P